Sunday, May 3, 2020

काेरोना से मुक्ति के लिए माता के दरबार में पहुंचे कलेक्टर, 1000 साल पुराने माता मंदिर में प्रार्थना की


जिले में लगातार पैर पसार रहेकोरोना से मुक्ति के लिए रविवार को कलेक्टर शशांक मिश्र ने 24 खंभामाता में पूजन-अर्चन किया। यह पूजा प्रतिवर्ष महाष्टमी के दिन होती है, लेकिन इस बार काेरोना संकट के कारण पूजा नहीं हो पाई थी। ऐसे में बाबा गुमानदेव हनुमान मंदिर के पुजारी पंडित चंदन व्यास ने कुछ दिनों पहले कलेक्टर से कोरोना के प्रकोप से मुक्ति के लिए नगर पूजा का आग्रहकिया था, जिसके बाद कलेक्टर माता का आशीर्वाद लेने पहुंचे। राजा विक्रमादित्य के शासनकाल से ही नगर में सुख-समृद्धि और आपदा-विपदा से लोगों की रक्षा के लिए नगर पूजा की परंपरा चलीआ रही है।



ऐसे करते हैं पूजन की शुरुआत

यह मंदिर विश्व का संभवत: एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां महाअष्टमी के दिन माता को मदिरा चढ़ाई जाती है। सैकड़ों भक्तों की मौजूदगी में ढोल-ढमाकों के साथ गुदरी स्थित चौबीस खंभा माता मंदिर से नगर पूजा की शुरुआत की जाती है। कलेक्टर मदिरा की धार चढ़ाकर पूजा शुरू करते हैं। यह पूजा माता, भैरव व हनुमान मंदिर मिलाकर कुल 40 मंदिरों में होती है। 26 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद संपन्न होने वाली इस पूजा में 5 किलो सिंदूर, दो डिब्बे तेल, 25 बोतल मदिरा सहित 39 प्रकार की विशेष पूजन सामग्री रखी जाती है। हालांकि इस वर्ष काेरोना संकट के कारण यह पूजा नहीं हो सकी थी।

मदिरा का भोग लगाने की है परंपरा

महाकाल वन के मुख्य प्रवेश द्वार पर विराजित माता महामाया औरमाता महालाया चौबीस खंभा माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर मंदिर के भीतर 24 काले पत्थरों के खंभे हैं, इसीलिए इसे 24 खंभा माता मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह उज्जैन नगर में प्रवेश करने का प्राचीन द्वार हुआ करता था। पहले इसके आसपास परकोटा हुआ करता था। तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध उज्जैन या प्राचीन अवंतिका के चारों द्वार पर भैरव तथा देवी विराजित हैं, जो आपदा-विपदा से नगर की रक्षा करते हैं। चौबीस खंभा माता भी उनमें से एक हैं। यह मंदिर करीब 1000 साल पुराना है। नगर की सीमाओं पर स्थित इन देवी मंदिरों में राजा विक्रमादित्य के समय से नगर की सुरक्षा के लिए पूजन और मदिरा चढ़ाए जाने की परंपरा चली आ रही है।
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